( तर्ज - नैनमें बस जा गिरिधारी ० )
अँखियाँ प्रेमनकी भूखी हैं ॥टेक ॥
तडप रही यह जान कलहमें ,
शांति बिना दरसन हूकी है ॥१ ॥
कब पाओ कब पाओ जियको ?
नींद न आय , जिहा सूखी है ॥२ ॥
जिधर - उधर मेरे श्यामकी तारी ,
देखनको मनुवा झुकी है ॥३ ॥
तुकड्यादास कहे मिल प्यारे !
माफ किया करके चुकी है ॥४ ॥
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